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शीर्षक: शाब्बास राहूलजी!

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[अष्टाक्षरी काव्य]

मने दुभंगलेली जी।
आज तुम्ही जोडणार।
व्वा शाब्बास राहूलजी!
भिंती साऱ्या तोडणार।१।

नर जोडत नराशी।
साधा अखंड भारत।
ध्येय पावन उराशी।
शत्रू जाई खिंडारत।२।

हाक ‘भारत जोडो’ची।
दीन दुबळी ऐकुनी।
जागी झाली एकदाची।
होती जी मुर्दा पडुनी।३।

जिगरबाज…!

जाती धर्म प्रस्थे मोठी।
चालू त्यांची लिपापोती।
दावी मानवता खोटी।
बहु जन गुंग होती ।४।

वाणी वादग्रस्त टाळा।
कृती करा सर्वप्रिय।
प्रजा राहे पाठी गोळा।
जिंका हृदय हृदय ।५।

’भारत जोड़ो’ यात्रा : जाना किधर है? मंजिल कहाँ है??

कर्ज शेतकऱ्यां डोई।
मुले शिकून बेकार।
त्रस्त कामगार होई।
कोण घेईल कैवार? ।६।

प्रण तुम्ही पूर्ण करा।
ठाव घ्या मनी मानसी।
जन जन सुखी करा।
वदे श्रीकृष्णदास हे ।७।

✒️कवी:-श्रीकृष्णदास (बापू) निरंकारी.रामनगर,गडचिरोली.फक्त व्हॉट्सॲप- ९४२३७१४८८३.

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