श्री यमुनाजी प्रागट्योत्सवपर मुरलीमनोहर व्यास का मंतव्य
भारतीय संस्कृति में गंगाजी और यमुनाजी का अनन्य महत्व है। इन्हें हम नदीयां नही मां कहते हैं। हमारे शास्त्र कहते हैं, गंगाजी का प्रागट्य भगवान श्रीहरि के चरण के अंगुठे से हुआ और यमुनाजी का प्रागट्य भगवान श्रीहरि के हृदय कमल से हुआ।इसी लिए यमुनाजी की स्तुति में उन्हे *हरि हिय कमल विहारिणी* कहा गया है। श्री यमुनाजी भगवान श्रीकृष्ण की चतुर्थ पटराणी भी है। शास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की कृपा- भक्ति शीघ्र प्राप्त करने के लिए पहले श्रीयमुनाजी की आराधना करनी चाहिए। ऐसी श्री यमुनाजी का प्रागट्य चैत्र शुक्ल षष्ठमी के दिन हुआ, ऐसे विचार चंद्रपुर के आध्यात्मिक चिंतक तथा साहित्यकार मुरलीमनोहर व्यास ने प्रतिपादित किये।
श्री गोवर्धननाथ हवेली चंद्रपुर में श्री यमुनाजी प्रागट्योत्सवपर के अवसर पर आप बोल रहे थे।
वैष्णव महिला मंडल द्वारा श्री यमुनाष्टक के नौ पाठ तथा श्री यमुनाजी के 41 पदों के पाठ हुये। श्री यमुनाजी की आरती हुई।
व्यासजी ने कहा पुष्टिमार्ग में श्रीकृष्ण की भक्ति में भगवान की लीला स्थली ब्रज मंडल और श्री यमुनाजी का अन्य महत्व है। हमारे लिए यमुनाजी नदी नही यमुना मैया है। हम श्री यमुनाजी का पूजन करते हैं।
भारतीय संस्कृति में पर्वत,पहाड,वृक्ष एवं नदीयों का पूजन करके प्रकृति का सम्मान किया जाता है। निसर्ग का पूजन करते हैं। नदीयों का हमारे जीवन में अनन्य महत्व है, वे हमारी जीवनदायीनी है। नदीयों में स्वच्छ जल होंगा तभी हमारा जीवन स्वस्थ रहेंगा। नदीयों को स्वच्छ रख कर उनका सम्मान करो यही हमारे शास्त्रों का विज्ञान निष्ठ अध्यात्म दर्शन है।