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सनातन धर्म बनाम हिंदू धर्म

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*(टिप्पणी : संजय पराते)*

 

 

हाल ही में अरुण माहेश्वरी की 8 अध्यायों में विभाजित एक छोटी-सी पुस्तिका “सनातन धर्म : इतना सरल नहीं” आई है। यह पुस्तिका सनातन धर्म और हिंदू धर्म के बीच के संबंधों और विवादों का गहराई से तथ्यपरक विश्लेषण करती है।

हाल ही में हिंदुत्व का झंडा उठाए संघ-भाजपा ने चुपचाप हिंदू धर्म को सनातन धर्म से प्रतिस्थापित करने की कोशिश की है और सनातन धर्म को हिंदू धर्म का समानार्थी बता रही है। संघ भाजपा के इस चमत्कार पर पानी डालने का काम अरुण माहेश्वरी ने किया है। इस मायने में सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनैतिक कार्यकर्ताओं के लिए यह पुस्तिका बहुत उपयोगी है।

स्वामी करपात्री महाराज हिंदू धर्म के कट्टर नेता और शास्त्रज्ञ थे, जिन्होंने वेद, दर्शन, धर्म और राजनीति से जुड़े विषयों पर विपुल लेखन किया है। कट्टर हिंदू थे, सनातनी धर्म के अनुयायी थे, तो निश्चित रूप से मार्क्सवाद विरोधी भी थे। उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी “मार्क्सवाद और रामराज्य।” इसके जवाब में राहुल सांकृत्यायन ने एक छोटी-सी पुस्तिका लिखी थी “रामराज्य और मार्क्सवाद”, जिसमें उन्होंने करपात्रीजी के दार्शनिक और राजनैतिक तर्कों की धज्जियां उड़ा दी थी। लेकिन इससे करपात्रीजी की विद्वत्ता पर कोई आंच नहीं आती।

वर्ष 1940 में उन्होंने एक ‘धर्म संघ’ की स्थापना की थी — जिसका उद्देश्य था सनातन धर्म की स्थापना ; जबकि वर्ष 1925 में ही आरएसएस की स्थापना हो चुकी थी, जो हिंदू धर्म और नाजीवाद के आधार पर देश को चलाना चाहता था। साफ है कि आरएसएस के हिंदू धर्म से करपात्री महाराज के सनातनी धर्म का कोई लेना-देना नहीं था। वर्ष 1948 में उन्होंने ‘रामराज्य परिषद्’ का गठन किया, जबकि इसके बाद आरएसएस ने 1951 में जनसंघ का गठन किया था। आरएसएस का यह कदम भी बताता है कि उस समय उसके हिंदू धर्म का सनातन से कोई संबंध नहीं था। 1966 से गोरक्षा आंदोलन की शुरुआत भी करपात्रीजी ने ही की थी, जबकि यह मुद्दा आरएसएस के एजेंडे में भी नहीं था। करपात्रीजी के आरएसएस विरोध का इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है कि उन्होंने ‘राष्ट्रीय सेवक संघ और हिंदू धर्म’ नामक एक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने संघ के परम पूज्य गुरु गोलवलकर की ‘विचार नवनीत’ और ‘हम या हमारा राष्ट्रीयत्व’ में उल्लेखित हिंदू धर्म संबंधी धारणाओं का दार्शनिक दृष्टि से खंडन किया है और आरएसएस को हिंदू धर्म विरोधी संगठन घोषित किया है। उनकी दृष्टि में संघ का पूरा आचरण कपट और मिथ्याचार से भरा था और ऐसे में उनसे हिंदू धर्म की रक्षा की आशा नहीं की जा सकती थी। यही कारण है कि अपने शुरुआती जीवन के कुछ वर्षों बाद उन्होंने संघ से सहयोग का रास्ता छोड़ दिया था।

अपनी पुस्तिका में अरुण माहेश्वरी ने गोलवलकर की विचार-सरणी के बरक्स करपात्री महाराज को रखा है। आज जब “भगवाधारी आए हैं” का नारा संघ-भाजपा का प्रिय नारा बन गया है, माहेश्वरी बताते हैं कि किस प्रकार करपात्रीजी ने भगवा ध्वज की श्रेष्ठता और इसके राष्ट्रीयता का प्रतीक होने की संघ की धारणा को दार्शनिक चुनौती दी थी। वे करपात्री जी को उद्धृत करते हैं — (महा) “भारत संग्राम में भीष्म, द्रोण, कर्ण, भीम, अर्जुन के रथ के ध्वज पृथक-पृथक थे। अर्जुन तो कपि ध्वज के रूप में प्रसिद्ध ही है। अतः सभी हमारे पूर्वज भगवा ध्वज को ही मानते थे, यह तो नहीं ही कहा जा सकता। … (इसलिए) आपके भगवा ध्वज को अपना लेने से वह सार्वभौम, सर्वमान्य नहीं कहा जा सकता।” यह उल्लेखनीय है कि भगवा ध्वज की श्रेष्ठता का प्रचार करते हुए छत्तीसगढ़ में ध्वज विवाद के नाम पर कई जगहों पर संघ-भाजपा ने सांप्रदायिक तनाव और दंगे भड़काए हैं। इस वर्ष गणतंत्र दिवस पर तो ऐसा माहौल बनाया गया था कि राष्ट्रीय झंडा ‘तिरंगा’ की जगह भगवा ने ही ले लिया है।

करपात्रीजी शास्त्रों के सहारे यह भी सिद्ध करते है कि सनातनी हिंदू अनिवार्य तौर पर वर्णाश्रमी होगा और सांप्रदायिक होना कोई दुर्गुण नहीं, बल्कि हिन्दू होने का प्रमुख गुण है। संघ-भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति इन दोनों आरोपों से बचना चाहती है। इसी क्रम में उन्होंने ‘राष्ट्रीयता’ के संबंध में आरएसएस की इस अवधारणा का भी शास्त्रीय खंडन किया है कि केवल समान धर्म, समान भाषा, समान संस्कृति, समान जाति और समान इतिहास वाले लोग ही ‘एक राष्ट्र’ कहे जा सकते हैं और मुस्लिम, ईसाई आदि यदि हिंदू धर्म में सम्मिलित हो जाएं, तो वे भी ‘राष्ट्रीय’ हो सकते हैं। करपात्री जी के सनातनी विचारों के अनुसार संघ की यह सोच मुस्लिम विरोध और हिटलर के उग्र राष्ट्रवाद की अनुगामिता से उपजी है। उनका मानना है कि सनातन की अवधारणा मूलतः वेदों की अनादिता और अपौरुषेयता पर टिकी हुई है, जिसे गोलवरकर नहीं मानते। इस प्रकार, अपने शास्त्र-आधारित तर्कों से करपात्री महाराज आरएसएस को न केवल हिंदू धर्म विरोधी, बल्कि सनातन धर्म विरोधी भी साबित करते हैं।

गोलवलकर और किसी भी अन्य संघी सिद्धांतकार ने आज तक करपात्री जी के आरोपों का कोई जवाब नहीं दिया है, क्योंकि उनके पास करपात्री के धर्म आधारित विचारों का खण्डन करने के लिए आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि नहीं है, जैसी दृष्टि राहुल सांकृत्यायन के पास थी। अरुण माहेश्वरी की टिप्पणी है — “आज तो इस मोदी युग में आरएसएस ने खुद ही सनातन धर्म का झंडा उठाकर प्रकारांतर से करपात्री के तब के सारे अभियोगों को नतमस्तक होकर पूरी तरह स्वीकार कर लिया है।” जिन लोगों पर सनातन धर्म नष्ट करने का आरोप लगा था, यह इतिहास की उलटबांसी है कि उनके ही वंशज आज सनातन धर्म का झंडा उठाए विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ पर आरोप लगा रहे हैं कि वे भारत से सनातन को नष्ट करना चाहते हैं। यह ठीक वैसा ही है, जैसा अंग्रेजों का तलुवे चाटने वाला संघ आज अपने को राष्ट्र भक्त और विपक्ष को राष्ट्र विरोधी बताने में लगा हुआ है। हिंदू धर्म को सनातन धर्म कहना वैसा ही है, जैसा वर्ष 2014 के चुनावी वादे बाद में पूरे संघी गिरोह के लिए ‘जुमलों’ में बदल गए थे और आज फिर उसे ‘मोदी गारंटी’ के रूप में पेश किया जा रहा है। साफ है कि संघ-भाजपा को न तो हिंदू धर्म से कोई मतलब है, न सनातन धर्म से कोई लेना-देना है। सत्ता के लिए धर्म को जब राजनीति का हथियार बनाया जाता है, तो ऐसी कलाबाजी भी करनी ही पड़ेगी।

विचारशील ‘भक्तों’ के लिए भी यह पुस्तिका उनकी आंखें खोलने वाली साबित होगी, ऐसी आशा की जा सकती है।

_*(टिप्पणीकार वामपंथी कार्यकर्ता और छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष है। संपर्क : 94242-31650)*_

पुस्तक : सनातन धर्म : इतना सरल नहीं
लेखक : अरुण माहेश्वरी (मो. 98310-97219)
प्रकाशन : सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर
मूल्य : 200 रूपये
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_*Sanatan Dharma Vs Hindu Dharm*_
*(Comment by _Sanjay Parate_ )*

Recently, a small booklet by Arun Maheshwari divided into 8 chapters “Sanatan Dharma: Itna Saral Nahin” (in Hindi) has come out. This booklet provides an in-depth factual analysis of the relations and controversies between Sanatan Dharma and Hindu Dharm.

Recently, Sangh-BJP, raising the flag of Hindutva, have quietly tried to replace Hindu Dharm with Sanatan Dharma and are calling Sanatan Dharma synonymous with Hindu Dharm. Arun Maheshwari has done the work of spoiling this miracle of Sangh and BJP. In this sense, this booklet is very useful for social-cultural-political workers.

Swami Karpatri Maharaj was a staunch leader and scholar of Hindu religion, who has written extensively on subjects related to Vedas, philosophy, religion and politics. He was a staunch Hindu, a follower of Sanatani Dharma, and was definitely anti-Marxism. He wrote a book “Marxism and Ramrajya.” In response to this, Rahul Sankrityayan had written a small booklet “Ramrajya and Marxism”, in which he demolished Karpatriji’s philosophical and political arguments. But this does not detract from Karpatriji’s scholarship.

In the year 1940, he had established a ‘Dharma Sangh’ – whose objective was to establish Sanatan Dharma ; Whereas RSS was established in the year 1925 itself, which wanted to run the country on the basis of Hindu Dharm and Nazism. It is clear that Karpatri Maharaj’s Sanatani religion had nothing to do with the Hindu religion of RSS. In the year 1948, he formed ‘Ramrajya Parishad’, while after this RSS formed Jan Sangh in 1951. This step of RSS also shows that at that time its Hindu religion had no connection with Sanatan. Karpatriji had also started the cow protection movement in 1966, although this issue was not even on the agenda of RSS. What could be a bigger proof of Karpatriji’s opposition to RSS than the fact that he wrote a book named ‘Rashtriya Sevak Sangh and Hindu Dharma’, in which he mentioned Sangh’s most revered Guru Golwalkar’s ‘Vichar Navneet’ and ‘Hum Ya Hamara Rashtriyatva’. Philosophically refuted the concepts related to Hinduism and declared RSS as an anti-Hindu organization. In his view, the entire conduct of the Sangh was full of fraud and deceit and in such a situation they could not be expected to protect the Hindu religion. This is the reason why after a few years of his early life he left the path of cooperation with the Sangh.

In his booklet, Arun Maheshwari has placed Karpatri Maharaj against Golwalkar’s ideology. Today, when the slogan “Bhagwadhari Aaye Hain” has become a favorite slogan of the Sangh-BJP, Maheshwari explains how Karpatriji had philosophically challenged the Sangh’s notion of the superiority of the saffron flag and its being a symbol of nationalism. He quotes Karpatri ji — “In the battle of (Maha) Bhatat the chariot flags of Bhishma, Drona, Karna, Bhima and Arjuna were different. Arjuna is famous as the monkey flag (Kapi-dhwaj) Hence, it is wrong to say that all our ancestors used saffron flag. It cannot be said that you believe in the flag itself. … (Therefore) your adoption of the saffron flag cannot be called universal and universally accepted.” It is noteworthy that while propagating the superiority of the saffron flag, the Sangh-BJP have instigated communal tension and riots at many places in the name of flag dispute in Chhattisgarh. This year, on Republic Day, such an atmosphere was created that the national flag ‘tricolor’ was replaced by saffron.

Karpatriji also proves with the help of scriptures that a Sanatani Hindu will essentially be Varnashrami and being communal is not a bad quality, but is the main quality of being a Hindu. The Hindutva politics of RSS-BJP wants to avoid both these allegations. In the same sequence, he has also classically refuted the concept of RSS regarding ‘nationality’ that only people with same religion, same language, same culture, same caste and same history can be called ‘one nation’ and if Muslims and Christians etc. join Hindu religion, they can also become ‘national’. According to the Sanatani views of Karpatri ji, this thinking of the Sangh stems from anti-Muslim sentiments and following Hitler’s extreme nationalism. He believes that the concept of Sanatan is basically based on the eternity and immortality of the Vedas, which Golvarkar does not believe. Thus, with his scripture-based arguments, Karpatri Maharaj proves RSS to be not only anti-Hindu but also anti-Sanatan Dharma.

Golwalkar and any other Sanghi theorist have not responded to Karpatri ji’s allegations till date, because they do not have the modern scientific vision to refute Karpatri’s religion-based views, like Rahul Sankrityayan had. Arun Maheshwari’s comment is – “Today, in this Modi era, the RSS itself has raised the flag of Sanatan Dharma and has bowed down and completely accepted all the allegations of the then Karpatri.” Those who were accused of destroying Sanatan Dharma, it is a reversal of history that their own descendants are today raising the flag of Sanatan Dharma and accusing the opposition alliance ‘India’ of wanting to destroy Sanatan from India. This is exactly the same as the organization that used to lick the soles of the British is today calling itself patriots and the opposition as anti-nationals. Calling Hindu Dharm as Sanatan Dharma is like the election promises of 2014 which later turned into ‘jumlas’ for the entire Sanghi gang and today again they are being presented as ‘Modi Guarantee’. It is clear that Sangh-BJP neither have anything to do with Hindu religion nor anything to do with Sanatan Dharma. When religion is made a political weapon for power, then such acrobatics will have to be done.

It can be hoped that this booklet will prove to be an eye opener for thoughtful ‘Bhakta’ (‘devotees’) also.

_*(The commentator is a left activist and Vice President of CGKS, affiliated to All India Kisan Sabha. Contact: 94242-31650)*
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Book: Sanatan Dharma: Itna Saral Nahin (Hindi)
Author: Arun Maheshwari (M : 98310-97219)
Publication: Surya Prakashan Mandir, Bikaner
Price: Rs 200

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