🔺1. चलो बुलावा आया है, राष्ट्र सेठ ने बुलाया है!
इन अमरीकियों ने क्या हद्द ही नहीं कर रखी है। चोरी तो चोरी, ऊपर से सीनाजोरी और। बताइए, मोदी जी की सरकार के ही खिलाफ षडयंत्र रच रहे हैं। षडयंत्र भी कोई ऐसा-वैसा नहीं। सिर्फ बदनाम करने या शर्मिंदा करने का षडयंत्र नहीं। बाकायदा सरकार को अस्थिर करने का षडयंत्र। और कोई एक बार का षडयंत्र नहीं कि कोई मान ले कि संयोग से, अनजाने में या गलती से कुछ हो गया होगा। बार-बार, लगातार षडयंत्र। षडयंत्र पर षडयंत्र। कभी पेगासस का षडयंत्र रचने के प्रचार का षडयंत्र। कभी रफाल की खरीद में घपले-घोटाले के प्रचार का षडयंत्र। कभी देश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचारों की अफवाहें फैलाने का षडयंत्र। कभी भारत में प्रेस की स्वतंत्रता गायब हो जाने के दुष्प्रचार का षडयंत्र। कभी मोदी जी के राज में भूख बढ़ने के कुप्रचार का षडयंत्र।
और तो और, भाई लोगों ने मोदी जी-शाह जी के राज में डेमोक्रेसी के गायब हो जाने के प्रचार तक का षडयंत्र कर के देख लिया। और वह तो ट्रम्प से मोदी जी की दोस्ती काम आ गयी और लगता है कि ट्रम्प ने चुप करा दिया, वर्ना एलन मस्क ने तो ईवीएम के हैक हो सकने का भी एलान कर दिया था। नहीं समझे — अरे मोदी जी की गद्दी ही चोरी की होने तक के इल्जाम का षडयंत्र!
पर इन सब षडयंत्रों से मोदी जी की सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा। असर क्या पड़ता, उसने तो होठों पर एक उफ तक नहीं आने दी। अमरीकियों से जरा सी शिकायत तक नहीं की। उल्टे हर बार अमरीकियों का स्वागत मुस्कुरा कर पान पराग के साथ किया गया। दस साल में अमरीकियों के यहां इतनी आवा-जाही की, इतनी आवा-जाही की कि नई दिल्ली और वाशिंगटन का अंतर ही मिटता लगने लगा। सारी दुनिया कहने लगी कि मोहब्बत हो तो ऐसी। मोहब्बत की थी तो, अमरीका जो भी कहे, भारत करने को तैयार हो जाए। वो कहे चीन को दुश्मन मानो, भारत ललकार के दिखाए। वो कहे मुझसे ही हथियार खरीदो, भारत आर्डर बनाकर ले जाए। वह कहे ईरान से तेल मत खरीदो, भारत ईरान से तेल के मामले में कुट्टी कर आए। वह कहे इस्राइल से पक्की वाली दोस्ती कर लो, भारत उससे भी मोहब्बत की कसमें खाए और फिलिस्तीनियों को जीभ चिढ़ाए। और तो और, एक-दूसरे के लिए, चुनाव प्रचार भी करने लगे। यह दूसरी बात है कि मोदी जी ने प्रचार तो ईमानदारी से किया, पर अमरीकी पब्लिक ने ही उस बार ट्रम्प को हरा दिया। हां! अगले ही चुनाव में अमरीकी पब्लिक ने अपनी गलती दुरुस्त कर ली और ‘‘फिर ट्रम्प सरकार’’ की मोदी जी की इच्छा भी पूरी कर दी।
फिर भी अमरीकियों ने दगा की। दगा भी ऐसी-वैसी नहीं, जानमारू षडयंत्र। जब तक उनके षडयंत्र के निशाने पर मोदी जी की सरकार रही, मोदी जी ने परवाह नहीं की। उनके षडयंत्र के निशाने पर जनतंत्र से लेकर भूख तक के मामले में भारत की शान रही, तब भी मोदी जी ने परवाह नहीं की। लेकिन, अब पानी सिर से ऊपर निकल गया है। अब वे भारत की आत्मा पर प्रहार कर रहे हैं। हमारी पहचान के चिन्हों पर प्रहार कर रहे हैं। वे तो हमारे राष्ट्रीय सेठ की धन-दौलत पर प्रहार करने तक चले गए हैं। और प्रहार भी सिर्फ प्रचार के माध्यम से नहीं कर रहे हैं। प्रहार सिर्फ हिंडनबर्ग वाले घातक प्रचार का भी नहीं कर रहे हैं, जिसने राष्ट्रीय सेठ के अरबों डालर डुबो दिए थे। अब तो वे सीधे-सीधे मामले-मुकद्दमे वाला प्रहार कर रहे हैं। रिश्वतखोरी के खाते खोल रहे हैं, कि भारत में मोदी जी के विरोधी शोर मचाएं। धोखाधड़ी और ठगी के लिए अपने यहां वारंट निकाल रहे हैं। मोहब्बत में खटास भी पैदा हो जाए, तो ऐसे षडयंत्र कौन करता है, जी!
अमरीका वाले अगर यह सोचते हैं कि मोदी जी का भारत उनका हरेक षडयंत्र मुस्कुरा का झेल जाएगा, तो यह उनकी गलती है। ये मोदी का भारत है। उसने इतने षडयंत्र झेल लिए, इसे ही उन्हें बहुत गनीमत समझना चाहिए। पर यह षडयंत्र, स्वीकार नहीं किया जाएगा। कोई भी, पक्के से पक्का दोस्त भी, अगर राष्ट्र सेठ जैसे हमारे राष्ट्रीय चिन्हों को हाथ लगाएगा, तो उसका हाथ भारत के विक्षोभ के ताप से जल जाएगा। अमरीकियों के लिए अब भी समय है, इस षडयंत्र से हाथ खींच लें। मामला-मुकद्दमा ले-दे कर रफा-दफा कर दें। भारत में घूस लेने-देेने के मामले को, अपने पश्चिमी पैमानों से जांचने से बाज आएं। जब लेने-देने का मामला हमारे देश का है, घूस लेने-देने वाले हमारे देश के हैं, तो घूस को विदेशी पैमाने से क्यों देखा जाना चाहिए? सच पूछा जाए, तो अमरीकियों को तो इस मामले में पड़ना ही नहीं चाहिए था। आखिर, मोहब्बत का कुछ ख्याल तो उन्हें भी करना चाहिए था।
अब भी मोहब्बत का ख्याल है, तभी तो मोदी जी अब भी चुप हैं। जरूर सोच रहे होंगे कि उनकी ही मोहब्बत में कोई कमी रह गयी होगी, जो अमरीकियों से प्यार का यह सिला मिला।
अब तक निशिकांत दुबे, संबित पात्रा, सुधांशु त्रिवेदी आदि ही बोल रहे हैं। और वह भी संसद में। और वह भी राहुल गांधी और विपक्ष पर हमला करने की कोशिश में। पर जिस दिन मोदी जी का मुंह खुल गया, उस दिन अमरीकियों के लिए मुंह छुपाना मुश्किल हो जाएगा। मोदी जी ऐसी-ऐसी सुनाएंगे, ऐसी-ऐसी सुनाएंगे कि सारी दुनिया के मुंह खुले के खुले रह जाएंगे। आखिरकार, राष्ट्रीय सेठ पर हमला, तो मोदी जी पर ही हमला है। और मोदी पर हमला, यानी भारत पर हमला। यानी राष्ट्रीय सेठ पर हमला, भारत पर हमला है। और मोदी जी के भारत पर कोई हमला करे, फिर भले ही वह कितना ही प्रिय ही क्यों न हो, मोदी जी उसे कभी नहीं छोड़ते हैं ; पार्टी में लाकर छोड़ते हैं या बर्बाद कर के। माना कि यह सब अमरीकियों के साथ नहीं किया जा सकता है, फिर भी पुरानी मोहब्बत की खातिर ट्रम्प जी भी, राष्ट्रीय सेठ पर मामले-मुकद्दमे खत्म करा के, मोदी जी की मोहब्बत की पार्टी में तो अमरीका की वापसी करा ही सकते हैं। खैर तब तक — चलो बुलावा आया है, राष्ट्र सेठ ने बुलाया है!
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🔺2. बच्चे तीन ही अच्छे!
थैंक्यू भागवत जी, आपने बचा लिया। वर्ना ये देश तो बस डूबने ही वाला था। माना कि मरने वाले पहले से कम मर रहे थे, पर पैदा होने वाले तो और भी कम पैदा हो रहे थे। सो आबादी घटती जा रही थी। बूढ़ों की आबादी बढ़ती जा रही थी। वह दिन दूर नहीं था, जब देश में सिर्फ बूढ़े रह जाते और धीरे-धीरे वो भी मर-खप जाते। भारतवर्ष ही मिट जाता। पर आपने एक छोटा सा सूत्र देकर बचा लिया — बच्चे तीन ही अच्छे। बच्चे कम से कम तीन बनाओ, भारत को नंबर वन बनाओ!
हमें पता है कि हुज्जत करने वाले देश की रक्षा के इस फार्मूले पर भी हुज्जत करेेंगे। और कुछ नहीं, तो गिनती का ही टंटा खड़ा करेंगे। कहेेंगे कि भागवत जी को यह गिनती कहां से मिली कि आबादी घट रही है। लेकिन, आबादी का घटना या बढ़ना, क्या सिर्फ गिनती का मामला है। सिर्फ गिनती से डेमोक्रेसी चलती है, देशों की आबादियां नहीं चला करती हैं। देश विश्वासों से, आस्थाओं से चलते हैं। असली चीज है विश्वास। संघ का विश्वास है कि आबादी घट रही है, तो आबादी घट रही है। जैसे हाथी के पांव में सब का पांव, वैसे भागवत जी के विश्वास में मोदी जी का विश्वास, उनकी सरकार का विश्वास। और होने को तो हो सकता है कि आखिर में उनकी जनगणना का भी भागवत जी के विश्वास मेें ही विश्वास निकल आए। इसीलिए तो जनगणना नहीं करा रहे हैं ; आबादी जरा अच्छी तरह से घट ले, जिससे गिनती का भागवत जी के विश्वास से मेल बैठ जाए। वर्ना गिनती ही एंटी-नेशनल कहलाएगी, भागवत जी तो अपने विश्वास से टस-से-मस होने से रहे। बच्चे तो तीन ही अच्छे रहेेंगे।
और ये भागवत जी, मोदी जी, योगी जी आदि, आदि से तीन बच्चों की डिमांड की दुष्टता बंद होनी चाहिए। भागवत जी की डिमांड कम से कम तीन बच्चों की है। तीन से फालतू होंगे, वो इन राष्ट्र निर्माताओं के हिस्से की भरपाई करेेंगे। और हां! इसमें हिंदू-मुस्लिम करने का इल्जाम भागवत जी पर कोई नहीं लगा सकता है। मुसलमान भी करें तीन या ज्यादा बच्चे पैदा, संघ क्या रोकता है? बस हिंदू तीन से कम बच्चे ना करें। मां-बाप और अडानी जी की सेवा में एक-एक बच्चा लग जाएगा, तो हिंदू त्योहारों पर मस्जिदों के आगे तलवार कौन लहराएगा?
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🔺3. मिलावट से बचियो!
ये सेकुलर वाले सचमुच इतने ही मूढ़मति हैं या मूढ़मति होने का दिखावा करते हैं। बताइए, मुरादाबाद में खाते-पीते लोगों के मोहल्ले, टीडीएस सिटी में एक मुसलमान डाक्टर मियां-बीवी को मोहल्ले वालों ने बसने से पहले उजाड़ क्या दिया, मार तमाम हाय-हाय कर रहे हैं, जैसे आसमान ही सिर पर गिर पड़ा हो। पूछता है भारत की नकल पर पूछ रहे हैं — क्या यही विकसित भारत है, जिसमें हिंदू और मुसलमान, पड़ौसी बनकर भी नहीं रह सकते हैं? डाक्टर ने डाक्टर को घर बेचा, मोहल्ले के बाकी पड़ौसी और पड़ौसिन बीच में कहां से आ गए, दाल-भात में मूसलचंद बनकर। कह रहे हैं कि किसी मुसलमान को हम अपने मोहल्ले में नहीं रहने दे सकते, नहीं रहने देंगे। प्रशासन, हिंदू और मुसलमान डाक्टर के बीच, घर की इस खरीद-फरोख्त को कैंसिल कराए। यह तो देश के संविधान और कानून का भी उल्लंघन है, फिर इंसानियत की तो बात ही क्या करना, वगैरह, वगैरह।
पर ये सब असली मुद्दे से ध्यान हटाने की बातें हैं। असली मुद्दा है, मिलावट का डर। बेचारे टीडीएस सिटी वालों का मिलावट से डरना क्या गलत है? कोई हमें भी बता दे कि देश का संविधान, कानून कहां कहता है कि मिलावट से बचना गलत है? टीडीएस सोसाइटी वाले अंकल-आंटियों को नाहक मुस्लिम-दुश्मन कहकर बदनाम किया जा रहा है। उन्होने तो किसी मुसलमान का नाम तक नहीं लिया। उन्होंने तो पूरी उदारता से घर खरीदने वाले मुसलमान डाक्टर दम्पति को उनके पैसे वापस दिलाने का भी ऑफर दिया था। मांगते तो उनके पैसे पर ब्याज भी दिलाने को तैयार हो जाते, हालांकि मुसलमानों में ब्याज लेना-देना हराम माना जाता है। आखिर, दुनिया में हिंदू से ज्यादा उदार कौन है? ऐसा भला और कौन है, जो वसुधैव कुटुंबकम में विश्वास करता हो? मुसलमान डाक्टर दम्पति पहले भी तो अपने घर में खुशी से रहते होंगे, तब तो टीडीएस सिटी वाले ने नहीं गए उनकी खुशी में टांग अड़ाने। फिर वे ही क्यों आ गए टीडीएस सिटी वालों की खुशियों की लंका लगाने। वे ही क्यों आ गए, टीडीएस सिटी के साढ़े चार सौ घरों को मिलावट के खतरे से डराने।
अब प्लीज कोई ये मत कहना कि मुसलमान मियां-बीवी अपने खरीदे घर में रहने लगते, तो किसी का क्या चला जाता? कुछ नहीं चला जाता नहीं, सब कुछ चला जाता। खाए-पिये हिंदुओं का अमन-चैन चला जाता। संस्कार चला जाता। धर्म तक चला जाता। आते-जाते लोग जो विधर्मी से छुआते, उसका क्या? बल्कि सिर्फ छुआते ही थोड़े ही, अपनी सांस के साथ छोडक़र जो कीटाणु वे पूरे मोहल्ले के वातावरण में फैलाते, उसका क्या? और जो रसोई से गंधें फैलाते। जो बोल-चाल से, अपनी बोली-बानी फैलाते उसका क्या? जरा सोचिए मुसलमान डाक्टर दम्पति क्या-क्या नहीं फैलाते? और सबसे खतरनाक, वो जो अपने घर में, बल्कि रसोई तक में शूद्र-वूद्रों को घुसा लेते, उसका क्या? साहब, हिंदू धर्म ही खतरे में पड़ जाता। और जो उनका चाल-चलन देखकर, बाकी घरों के लडक़े-लड़कियां बिगड़ जाते, उसका क्या? मोहल्ले वालों ने एकदम सही नुक्ता पकड़ा — मिलावट नहीं चाहिए। न धर्म में मिलावट चाहिए, न संस्कृति में मिलावट चाहिए, न जाति में मिलावट चाहिए, न समाज में मिलावट चाहिए, न घर में मिलावट चाहिए, न खून में मिलावट चाहिए, न बोली-बानी में मिलावट चाहिए, न खान-पान में मिलावट चाहिए। हमें अपनी शुद्घता प्यारी है। क्या शुद्धता से प्यार करना बुरी बात है! बल्कि टीडीएस सिटी वाले अंकल-आंटी तो मुसलमानों की भी शुद्धता की रक्षा ही कर रहे थे। मुसलमान भी रहें अपने बाड़े में ही, हिंदुपन की मिलावट से दूर। हिंदू राष्ट्र में उनका भी यह अधिकार है।
टीडीएस सिटी वाले अंकल-आंटी गलत कैसे हो सकते हैं, वे तो योगी-मोदी जी को ही फॉलो करते हैं — बंटोगे तो कटोगे और एक हैं तो सेफ हैं। मुसलमान डाक्टर दंपति को खदेड़ने के पहले और खदेड़ने के बाद, टीडीएस सिटी वाले एक ही तो हैं और डीएनए की मिलावट से सेफ भी हैं।
✒️राजेंद्र शर्मा(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोक लहर’ के संपादक हैं।)