भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को देश के कृषि क्षेत्रों में लोकसभा चुनावों में भारी झटका लगा है। भाजपा को पांच राज्यों में कम से कम 38 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा, जहां नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ किसानों का आंदोलन मजबूत था। यह सरकार नरेंद्र मोदी की पिछली दो सरकारों की ही अगली कड़ी है, जिन्होंने कॉरपोरेट घरानों का पक्ष लिया था और कृषि क्षेत्र में नीतियों को उनके पक्ष में मोड़ दिया था।
*बढ़ती किसान आत्महत्याएं*
किसानों को उम्मीद है कि यह सरकार अपने पिछले सभी बजटों से हटकर कुछ नया पेश करेगी। बेशक, यह एक बड़ी चुनौती है। लेकिन जब तक ऐसा नहीं किया जाता, किसानों के बीच असंतोष और कृषि संकट कम होने वाला नहीं है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि 2015 से 2022 के बीच 1,00,474 किसानों और खेत मजदूरों ने आत्महत्या की है। यह आंकड़ा बढ़ता जा रहा है और यह भारत के कृषि संकट का एक दुखद पहलू है।
आज देश में किसानों के लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा एमएस स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार, सी-2+50% की दर से वैधानिक न्यूनतम समर्थन मूल्य पाना है, जो उत्पादन की सकल लागत का डेढ़ गुना होता है । यह नरेंद्र मोदी और भाजपा के घोषणापत्र द्वारा 2014 में किया गया वादा था। अब वे इस पर चुप हैं। जब तक ऐसा नहीं किया जाता, तब तक कृषि संकट को हल करना भी असंभव होगा। उन्हें इसे लागू करने के लिए बजटीय प्रावधान करने होंगे। यह हमारी पहली मांग है। लेकिन इसको लागू करने के लिए उन्हें किसान आंदोलनों से बातचीत करनी होगी। अभी तक ऐसी कोई चर्चा नहीं हुई है।
*इनपुट कीमतों में कटौती*
दूसरा मुद्दा, उत्पादन की बढ़ती लागत का है। इस साल के बजट से हमारी उम्मीद है कि सरकार खाद, बीज, कीटनाशक, डीजल, पानी और बिजली की कीमतों में कमी करके उत्पादन लागत को कम करेगी। इन सभी इनपुट की दरें बढ़ रही हैं। भले ही किसानों को सी-2+50% की दर पर न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाए, लेकिन उत्पादन की लागत को कम किया जाना चाहिए। सी-2+50% की दर से वैधानिक न्यूनतम समर्थन मूल्य का कोई मतलब नहीं रह जाएगा, यदि उत्पादन की लागत को कम नहीं किया जाता।
सरकार बजट के माध्यम से कॉरपोरेट्स पर सख्त नियंत्रण रखकर इन कीमतों को कम कर सकती है, जो अब इन इनपुट्स के उत्पादन की प्रक्रिया का हिस्सा हैं। पहले, इनमें से ज़्यादातर इनपुट्स सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा उत्पादित किए जाते थे। बजट में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को उर्वरकों, कीटनाशकों और बीजों के उत्पादन में लगे रहने के लिए मदद देना चाहिए। यह सरकार आत्मनिर्भरता की बात तो करती है, लेकिन आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए कुछ नहीं करती। उर्वरकों के मामले में यह स्पष्ट है।
*कर्ज मुक्ति*
इस बजट से तीसरी उम्मीद है कि देश भर के किसानों और खेत मजदूरों के लिए एकमुश्त कर्जमाफी की जाएगी। जब तक ऐसा नहीं किया जाता, तब तक किसानों की आत्महत्याओं को रोका नहीं जा सकता। इस सरकार ने कॉरपोरेट्स के 16 लाख करोड़ रुपये के कर्ज माफ कर दिए हैं। लेकिन, उसका कहना है कि उनके पास किसानों की कर्जमाफी के लिए पैसे नहीं हैं। कर्जमाफी, उत्पादन की लागत में कमी लाना और सी-2+50 की दर से न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करना एक साथ किया जाना चाहिए। अगर ऐसा किया जाता है, तो कृषि क्षेत्र में 70% संकट से निपटा जा सकता है।
जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में चौथा बिंदु प्रासंगिक है । नियमित रूप से आने वाले सूखे, बाढ़, बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि को देखते हुए एक व्यापक फसल बीमा योजना होनी चाहिए, जो वर्तमान में लागू प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से बिल्कुल अलग हो। कई राज्यों ने इस योजना से खुद को अलग कर लिया है। कुछ राज्यों ने अपनी खुद की योजना शुरू की है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों के बजाय बीमा कंपनियों के हित में काम कर रही है। किसानों की मदद करने वाली एक व्यापक योजना के लिए बजटीय प्रावधान किया जाना चाहिए।
*सिंचाई परियोजनाएं*
पांचवां बिंदु सिंचाई और बिजली के सवाल का है। पिछले दशक में सिंचाई और बिजली में सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश में कटौती की गई है। इन क्षेत्रों को निजी कंपनियों को सौंपा जा रहा है और इसलिए पानी और बिजली की लागत बढ़ रही है। निजी क्षेत्र सरकार की तरह बांध बनाने में निवेश नहीं कर सकता। सिंचाई के सवाल पर केंद्र सरकार को ध्यान देना चाहिए। देश भर में कई सिंचाई परियोजनाएं अधूरी हैं। अगर वे पूरी हो जाती हैं, तो जमीन का एक बड़ा हिस्सा सिंचाई के दायरे में आ जाएगा। इसलिए बजट में इन सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने के लिए प्रावधान किए जाने चाहिए।
बिजली क्षेत्र में भी जब तक सार्वजनिक निवेश नहीं होगा, बिजली की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करना मुश्किल होगा। बिजली उत्पादन भी अब कॉरपोरेट घरानों के नियंत्रण में है। स्मार्ट मीटर ग्रामीण और शहरी सभी उपभोक्ताओं के लिए तबाही मचाने वाले हैं। सरकार ने बिजली अधिनियम संशोधन पर चर्चा करने पर सहमति जताई थी। लेकिन अभी तक कोई चर्चा नहीं हुई है।
*मनरेगा का विस्तार करो*
छठा बिंदु मनरेगा के विस्तार के बारे में है। मोदी सरकार जब से सत्ता में आई है, तब से वे मनरेगा को फंड से वंचित करने की कोशिश कर रहे हैं। काम के दिनों की औसत संख्या घटकर सिर्फ़ 42 रह गई है। सरकार को मज़दूरी बढ़ाकर 600 रूपये और काम के दिनों की संख्या कम से कम 200 करनी चाहिए। यह ग्रामीण मज़दूरों के लिए जीवन रेखा है और यह उनकी क्रय शक्ति बढ़ाने वाला कदम होगा।
*आमूल भूमि सुधार*
सातवां बिंदु, जो बहुत महत्वपूर्ण है, वह है भूमि का सवाल। सरकार ने ‘भूमि जोतने वाले को’ के नारे को बदलकर ‘भूमि कॉरपोरेट को’ कर दिया है। भूमि अधिग्रहण कानून का पूरी तरह से उल्लंघन करते हुए कॉरपोरेट घरानों द्वारा बड़े पैमाने पर कृषि भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है। खनन और अन्य6 उद्देश्यों के लिए सरकार द्वारा बिना किसी मुआवजे के आदिवासियों की भूमि ली जा रही है। भूमि अधिग्रहण केवल तभी किया जाना चाहिए, जब सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए अत्यंत आवश्यक हो। क्रांतिकारी भूमि सुधार शुरू किए जाने चाहिए और उन्हें पूरा किया जाना चाहिए।
*कॉर्पोरेट टैक्स बहाल करो*
इन सबके लिए संसाधन जुटाने के लिए केंद्र सरकार को संपत्ति कर और विरासत कर लगाना चाहिए । लेकिन उसने कॉर्पोरेट टैक्स में जबरदस्त कटौती की है। उन्हें इसे बहाल करना चाहिए। भारत एक ऐसा देश है, जहां कॉर्पोरेट टैक्स की दरें सबसे कम हैं। अमीरों को अधिक भुगतान सुनिश्चित करने के लिए आयकर स्लैब में भी बदलाव किया जाना चाहिए। वे मध्यम वर्ग को राहत देने के बजाय सभी पर आयकर कम कर रहे हैं। प्रत्यक्ष करों को बढ़ाया जाना चाहिए और अप्रत्यक्ष करों को कम किया जाना चाहिए और कठोर तरीकों का उपयोग करके कर चोरी को रोका जाना चाहिए।
*(आलेख : अशोक ढवले, अंग्रेजी से अनुवाद : संजय पराते)*
*(डॉ. अशोक ढवले संयुक्त किसान मोर्चा के वरिष्ठ नेता और अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष हैं। अनुवादक संजय पराते छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं। संपर्क : 94242-31650)*