Home महाराष्ट्र जो कहा सो किया!

जो कहा सो किया!

93

एक बात तो भगवाइयों के विरोधियों को भी माननी पड़ेगी। भगवाई जो कहते हैं, वो करते जरूर हैं। हमेशा की तो हम नहीं कहते, पर पिछले चालीस साल से ज्यादा से ही तो हम ही देख रहे हैं। तब कहा था कि मंदिर वहीं बनाएंगे। मंदिर वहीं बन रहा है या नहीं! हां! चार दशक से ज्यादा लग गए। बेशक, इस बीच अडवाणी जी पीएम के डिप्टी के डिप्टी ही रह गए और मोदी जी गुजरात से आकर पीएम बन गए। सारथी जी रथी बन गए और रथी जी मार्गदर्शक बनकर राह देखते ही रह गए। वही मोदी जी अगले साल बड़े चुनाव से पहले, भव्य मंदिर का उद्घाटन करने जा रहे हैं। इसीलिए, तो कहते हैं कि भगवाइयों के घर में देर तो हो सकती है, पर जो कह दिया, सो पूरा जरूर करते हैं। अपने भगवाई, रघुकुल वालों से कम हैं क्या? रघुकुल की रीत रही है — प्राण जाय, पर वचन न जाई। भगवाइयों की रीत और आगे वाली है–न प्राण जाएं, न वचन ही जाई!

पर स्मृति ईरानी के दरबार में तो चालीस साल तो क्या चालीस घंटे की भी देर नहीं है। देखा नहीं, कैसे ईरानी जी ने अपनी अमेठी में एक मीडिया हाउस के पत्रकार को प्यार से समझाया कि उनसे मुंह खुलवाने की जिद नहीं करे। ईरानी जी ने कुछ कहने-कुछ बोलने की जिद करने पर, मालिक से कहने का वचन भी दिया था। और चौबीस घंटे से पहले-पहले, अखबार के मालिक ने उनके अपना वचन पूरा करने के सम्मान में, पत्रकार को दरवाजा दिखा दिया। और मालिक ने पत्रकार को सिर्फ दरवाजा ही नहीं दिखाया। उसने तो अतीत में जाकर, विगत प्रभाव से ही पत्रकार को दरवाजा दिखा दिया। उसने कहा — कौन पत्रकार? हमारा ऐसे किसी पत्रकार से न कभी कोई संबंध था, न है और न होगा! ईरानी जी ने जो कहा, उससे भी सवाया कर के दिखा दिया। पत्रकार को ‘हैं’ से ‘था’ कराने का वादा था, पर उन्होंने तो पत्रकार को ‘कभी नहीं था’ ही करा दिया।

लेकिन, कोई यह न समझे कि स्मृति ईरानी जी ने कोई अपनी नाराजगी या अपना रौब दिखाने के लिए ही पत्रकार से जो कहा था, सो किया। बेशक, मोदी जी का उनके सिर पर वरदहस्त है और मोदी जी ने भी मालिकों से कह-कहकर, नौ साल में बहुतेरे पत्रकारों को, वर्तमान से भूतपूर्व कराया है। रवीश जैसों को भूतपूर्व कराने के लिए तो, उनके चैनल को ही खरीदवाकर, पत्रकारों समेत चैनल की स्वतंत्रता को बाकी सब चैनलों की तरह भूतपूर्व कराया है। फिर भी ईरानी जी ने जो कहा, वह सिर्फ अपने आदर्श, मोदी जी अनुसरण करने का ही मामला नहीं है। उनके जो कहा, सो किया में उनकी अपनी ऑरीजिनेलिटी भी है। ऑरीजिनेलिटी है, खांटी हिंदुत्व की सेवा की! ईरानी जी ने वादे के मुताबिक मालिक से शिकायत की, पत्रकार विपिन यादव की। लेकिन, मालिक ने विपिन यादव को तो खैर पहचानने से ही इंकार कर दिया, पर राशिद हुसैन से कह-बताकर अपने मीडिया हाउस का पट्टा उतरवा लिया। इस तरह गेहूं के साथ, शाह साहब ने जिसे घुन बताया था, वह भी पिस गया।

फिर भी जो भारत को डैमोक्रेसी की मम्मी डिक्लेअर होते देखकर खुश नहीं होते हैं, उन्हें तो इसमें भी पत्रकार की नौकरी जैसी छोटी चीज ही दिखाई दे रही है, जबकि अब पता चल रहा है कि वह नौकरी भी बिना तनख्वाह वाली थी — पट्टा ले जाओ, खुद कमाओ-खाओ! अरे भाई ये भी तो देखो कि सेंगोल वाले राजा लोग जो कहते हैं, वह करते जरूर हैं। हमें पक्का है कि एक दिन खाते में पंद्रह लाख भी आएंगे और अच्छे दिन भी। साल की दो करोड़ के हिसाब से नयी नौकरियां भी आ जाएंगी। बस जरा सी देरी पर उम्मीद छोड़ बैठना तो देशप्रेम नहीं है।

✒️व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here