शीर्षक: शाब्बास राहूलजी!

[अष्टाक्षरी काव्य] मने दुभंगलेली जी। आज तुम्ही जोडणार। व्वा शाब्बास राहूलजी! भिंती साऱ्या तोडणार।१। नर जोडत नराशी। साधा अखंड भारत। ध्येय पावन उराशी। शत्रू जाई खिंडारत।२। हाक ‘भारत जोडो’ची। दीन दुबळी ऐकुनी। जागी झाली एकदाची। होती जी मुर्दा पडुनी।३। जिगरबाज…! जाती धर्म प्रस्थे मोठी। चालू त्यांची लिपापोती। दावी मानवता खोटी। बहु जन गुंग होती ।४। … Continue reading शीर्षक: शाब्बास राहूलजी!