इंडिया में शरीफ आदमी की गुजर ही नहीं है। कुछ करे तो मुश्किल, नहीं करे तो मुश्किल। अपने मोदी जी चुनाव सभाओं में हाथ उठा-उठाकर वचन देते हैं, मैंने ये दिया, मैंने वो दिया, पर उसके लिए कभी थैंक यू मिलते देखा है? वोट कभी मिल भी जाए, पर थैंक यू कभी नहीं। उल्टे गालियां मिलती हैं, गालियां, वह भी किलो के हिसाब से। और कुछ नहीं तो इसके लिए ही गालियां कि हर बार नया वचन क्यों — पहले वाले का क्या हुआ? विरोधी तो खैर कर्कश सुर में गाते ही रहते हैं — क्या हुआ, पिछला वादा?
और जो कुछ करने का दावा ही नहीं करें तो? गालियां तब भी खाते हैं। पिछले दिनों नोटबंदी की छठी बरसी आयी और चली गयी। ढोल पीटना छोड़ो, मोदी जी ने एक ठो ट्वीट तक नहीं किया; न मैंने नोटबंदी करी का ट्वीट, न नोटबंदी हुई का ट्वीट। जिक्र ही नहीं किया। पर मिला कोई थैंक यू? उल्टे नोटबंदी को बुरा कहने वाले, मोदी जी को ही ताने देते रहे — नोटबंदी को कैसे भूल गए। नोटबंदीवीर बनकर पब्लिक से वोट क्यों नहीं मांगते!
पर मोदी जी भी गालियों से डरने वालों में से नहीं हैं। न नोटबंदी के टैम पर डरे। न जीएसटी के टैम पर डरे। और न कृषि कानूनों के टैम पर डरे। न कश्मीर बंदी के टैम पर, न लॉकडाउन के टैम पर। तभी तो दिन की दो-तीन किलो तक गालियां इकट्ठी कर लेते हैं और उनसे अपना निजी पॉवरहाउस चला लेते हैं। न कोई पावरकट और न सस्ती-महंगी बिजली का संकट। आत्मनिर्भरता की आत्मनिर्भरता, ऊपर से। और नेकी कर दरिया में डाल की फकीरी भी। अंत में इसका एहसान लादने का मौका भी कि हम भी चाहते तो कोविड के टीके के सर्टिफिकेट और गरीब कल्याण राशन के थैलों की तरह, विज्ञापनों से बाकी हर जगह भी अपनी तस्वीर चमकवा सकते थे। पर कितनी ही जगह नहीं चमकवायी, हम लोगों की जिंदगी को बदलने जो निकले थे।
सो नोटबंदी — नेकी कर, दरिया में। जीएसटी — नेकी कर, दरिया में। कृषि कानून — नेकी कर, दरिया में। श्रम संहिताएं –नेकी कर दरिया में। लॉकडाउन — नेकी कर दरिया में। कोवैक्सीन प्रमोशन — नेकी कर दरिया में। सीएए — नेकी कर दरिया में। कश्मीर फाइल्स प्रमोशन — नेकी कर दरिया में। मोरबी झूला पुल — नेकी जयसुख पटेल से, पब्लिक दरिया में।
✒️व्यंग्य:-राजेंद्र शर्मा)(व्यंग्यकार प्रतिष्ठित पत्रकार और “लोकलहर” के संपादक हैं।)